धूप – दोहे
धूप – दोहे
धूप विरह की है कड़ी, मिलना छांह समान।
कान्हा भी बिन बांसुरी, कैसे छेड़ें तान।।
सफर धूप का है कठिन, कर लीजे आराम।
मंजिल भी मिल जायेगी, मन में धर कर राम।।
मेहनत कश मेहनत करें, हो बरखा या घाम।
जो श्रम को करते नहीं, जीवन मरण समान।।
प्रेम बिना जीवन नहीं, जैसे दिन बिन धूप।
जा के हृदय न प्रेम हो, मृत जैसा वो भूप।।
जीवन धूप जब तक रहे, कर लीजे कुछ काम।
सांझ अगर ढल जाएगी, माया मिले न राम।।
आभार – नवीन पहल – १८.०४.२०२३ 🙏🙏
# प्रतियोगिता hetu
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Punam verma
19-Apr-2023 09:18 AM
Very nice
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Abhinav ji
19-Apr-2023 08:46 AM
Very nice 👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
19-Apr-2023 07:26 AM
बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति
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